कवि घाघ का मौसम विज्ञान

Author : Acharya Pranesh   Updated: January 14, 2021   2 Minutes Read   18,620

प्रकृति और कृषि का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है , प्रकृति ने अनेकों संसाधन उपलब्ध कराये हैं जो मनुष्य के जीवन पर अमिट प्रभाव रखते हैं। इन्ही संसाधनों में वर्षा एक ऐसा संसाधन है जिसके ऊपर विश्व भर की कृषि किसी न किसी रूप में निर्भर है।

कृषि के लिए प्रकृति या मौसम अत्यंत सहायक है, वहीं दूसरी ओर अति वृष्टि मनुष्य को कई अवसर पर असहाय भी कर देती है। उदाहरण स्वरूप समय से वर्षा का न होना या असमय वर्षा का होना, ये दोनों स्तिथि कृषि के लिये हानिकारक हैं।

भारतीय साहित्य में मौसम और कृषि के परस्पर सम्बन्ध को कवियों ने बड़ी अच्छी तरह चित्रित किया है। उन्ही में एक लोक कवि हुए हैं कवि घाघराम दूबे जो प्रचलित रूप से कवि घाघ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

कवि घाघ एक सिद्ध ज्योतिषाचार्य भी थे और उन्होंने प्रकृति के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को सटीक भाषा में इतनी खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , जो अन्यत्र कहीं शायद ही देखने को मिले।

कृषि तथा खेती किसानी के सम्बन्ध में उनकी कुछ पंक्तियाँ अद्भुत हैं -

1. असनी गलिया अन्त् विनासै, गली रेवती जल को नासे।
भरनी नासे तृनौ सहूतौ, कृतिका बरसै अंत बहुतौ।।
भावार्थयदि चैत्र के अश्विनी नक्षत्र में बरसा हो गई तो बरसात के मौसम में सूखा पड़ेगा। यदि रेवती नक्षत्र में बरसा हुई तो आगे नहीं होगी, यदि भरणी नक्षत्र में वर्षा हुई तो तृण का भी नास हो जाएगा, लेकिन यदि कृतिका नक्षत्र में बरसा हुई तो अंत तक अच्छी बरसात होगी। 

2. असुनी गल, भरनी गल, गलियो जेष्ठाहमूर।
पूरबा आषाढा़ धूल, कित उपजै सातो तूर।।
भावार्थयदि अश्विनी, भरणी एवं मूल नक्षत्र में बरसा हो गई और पूर्व आषाढ़ में नहीं भी हुई तब भी सातो प्रकार के अन्न होंगे। 

3. अद्रा बरसै पुनर्वसजाय, दीन अन्न कोऊ नहीं खाय।

भावार्थयदि आद्रा से पुनर्वस तक पानी बरसता रह जाए तो उसमे उपजे अनाज को नहीं खाना चाहिए, क्योंकि वह विषाक्त हो जाता है।

4. सावन पहली पंचमी गरभे उदेभान, बरखा होगी अति घनी, उँचो जान धान।

भावार्थयदि सावन के कृष्ण पंचमी को सूर्योदय बादलों के बीच हो तो उस वर्ष खूब बारिश होगी और धान की फसल भी प्रचुर होगी। 

5. साँझे धनुष सकारे मोरा, ये दोनो पानी के बौरा।

भावार्थयदि संध्या काल में आसमान में इंद्रधनुष दिखे और प्रात:काल मोर बोले तो निश्चय ही बारिश होती है। 

6. आकर कोदो नीम जवा, गाडर गेंहूँ , बेर चना।
भावार्थजिस वर्ष आकर या मदार खूब खिले, उस वर्ष कोदो की फसल अच्छी नहीं होगी लेकिन यदि  नीम खूब फूले - फले तो जौ की अच्छी फसल होती है। 

7. आस पास रबी बीच में खरीफ, नोन मिर्च डाल के खा गया हरीफ।
भावार्थयदि खेत में चारों ओर रबी की फसल लगी हो और उनके बीच में कोई खरीफ की फसल लगा दे तो फसलों के शत्रु कीड़े मकोड़े पूरी फसल को नष्ट कर देते हैं। 

8. इतवारी करै धनवंतरी हो, सोम करे सेवाफल होए।
बुध बियफैसुक्रे भरे बखार, सनि मंगल बीज न आवेद्वोर।
भावार्थइस पंक्ति में कवि घाघ किसान को खेती आरम्भ करने का शुभ समय बताते हैं। यदि किसान रविवार को खेती का शुभारंम्भ करता है, वह अवश्य ही धनवान होगा और उसकी फसल अच्छी होगी , सोमवार को करे तो मेहनत का फल मिलेगा और बुधवार , बृहस्पाति और शुक्रवार को खेती आरम्भ करे तो सम रहेगा , लेकिन यदि शनिवार, मंगलवार को खेती शुरू की जाये तो फसल अच्छी नहीं होती और नुकसान उठाना पड़ जाता है। 

9. उर्द मोथी की खेती करिहौं, कुँडिय़ाँ फोर उसर मेधरिहौ।
भावार्थउड़द और मोथ उसर खेत में करना चाहिए।

10. कपास चुनाई, खेत खनाई।
भावार्थकपास के फूल चुनने और खेत कोडऩे से निश्चय ही लाभ होता है।

11. गहिर न जोते बोवे धान, सो घर कोठिला भरै किसान।
भावार्थधान के खेत की जोताई हल्की करनी चाहिए, तभी फसल अच्छी होती है।

कवि घाघ का साहित्य एक विशाल सागर की भांति है जिसमे अनेकों मोती बिखरे पड़े हैं। कवि घाघ के साहित्य में केवल खेती किसानी ही नहीं वरन मानव जीवन और सामाजिक व्यवस्था पर मौसम और पर्यावरण के होनेवाले प्रभावों का सुन्दर चित्रण है।

आज के आधुनिक युग में भी यदि कवि घाघ के साहित्य के मोतियों तथा संकेतों का जीवन में अनुसरण किया जाये तो अवश्य ही एक स्वस्थ समाज निर्माण में प्रभावकारी सिद्ध होगा।


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