गया (बिहार) का परिवर्ती प्रदेश था. पुराणों के अनुसार बुद्धावतार कीकट देश में ही हुआ था. कीकट का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में है-- ' किंते कृण्वंति कीकटेषु गावो नाशिरं दुहे न तपन्ति धर्मं आनोभरप्रमगंदस्य वेदो नैचाशाखं के मधवत्रन्ध्यान:' 3,53, 14. इस उद्धरण में कीकट के शासक है प्रमगंद का उल्लेख है. यास्क के अनुसार (निरुक्त 6,32) कीकट अनार्य देश था. पुराण काल में कीकट मगध ही का एक नाम था तथा इससे सामन्यत: अपवित्र समझा जाता था; केवल गया और राजगृह तीर्थ रूप में पूजित थे-- 'कीकटेषु गया पुण्या पुण्यं राजगृहं वनम्' वायु पुराण 108,73. बृहद्धर्मपुराण में भी कीकट अनिष्ट देश माना गया है किन्तु कर्णदा और गया को अपवाद कहा गया है-- 'तत्र देशे गया नाम पुण्यदेशोस्ति वुश्रुत:, नदी च कर्णदा नाम पितृणां स्वर्गदायिनी' 26,47. श्रीमद्भागवत में कतिपय अपवित्र अथवा अनार्य लोगों के देशों में कीकट या मगध की गणना की गई है. महाभारत काल में भी ऐसी ही मान्यता थी. पांडवों की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में वर्णन है कि वे जब मगध की [p.193] सीमा के अंदर प्रवेश करने जा रहे थे तो उनके सहयात्री ब्राह्मण वहां से लौट आए. संभव है कि इस मान्यता का आधार वैदिक सभ्यता का मगध या पूर्वोत्तर भारत में देर से पहुंचना हो. अथर्ववेद 5,22,14 से भी अंग और मगध का वैदिक सभ्यता के प्रसार के बाहर होना सिद्ध होता है. पुराण काल में शायद बौद्ध धर्म का केंद्र होने के कारण ही मगध को अपुण्य देश समझा जाता था.
We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com
Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.